Sunday, May 25, 2014

चेहरा

चेहरा

एक चेहरे पे कितने चेहरे लिए,
आज देखो यहाँ घूमता आदमी.
मुस्कराहट लबों पे भी नकली लिए,
अब तो अपना बना कर छले आदमी.

जब थे मतलब के दिन वो तुम्हारा रहा,
तुम समन्दर थे जब वो किनारा रहा.
आज पानी तुम्हारा जो कम हो गया,
वो किनारा भी अब ना सहारा रहा.

एक चमकता सितारा थे जब तुम कभी,
ये चमकती फिजायें भी थीं साथ में.
रौशनी की ज़रा सी कमी क्या हुई,
एक दिया तक नहीं है तो अब पास में.

मतलबी क्यूं बना इतना इंसान अब,
आदमी क्यों बना है जी शैतान अब.
मन में झांकें तो पायेंगे बस बात ये,
दिन को दिन कह दिया था भरी रात में.

एक चेहरे पे कितने चेहरे लिए,
आज देखो यहाँ घूमता आदमी.
मुस्कराहट लबों पे भी नकली लिए,
अब तो अपना बना कर छले आदमी.

© सुशील मिश्र.

  25/05/2014

Thursday, May 15, 2014

ऐसा क्यों इंसान है


ऐसा क्यों इंसान है


एक चहरे पे कई चहरे,
ऐसा तो इंसान है,
फितरत जिसकी गिरगिट जैसी,
ऐसा क्यों इंसान है.

कल तक था जो खिला खिला सा,
खुशबू बांटा करता था.
आज नज़रिया उसका बदला,
ऐसा क्यों इंसान है.

सीधा सादा हिम्मतवाला,
सच जिसकी हर बातों में था.
वही झूठ का बना खिलाड़ी,
ऐसा क्यों इंसान है.

दिल का दर्द जुबां पे जिसके,
हमने सुना नहीं था अब तक.
अब लोगों के राज़ बेचता,
ऐसा क्यों इंसान है.

एक चहरे पे कई चहरे,
ऐसा तो इंसान है,
फितरत जिसकी गिरगिट जैसी,
ऐसा क्यों इंसान है.

© सुशील मिश्र.

15/04/2014