Sunday, June 15, 2014

माँ- बाप

माँ- बाप

बवंडर कितने भी हों खूंखार,
वो उनको मोड़ जाते हैं.
तपिश सूरज की खुद सह कर,
शीतल हवाएँ छोड़ जाते हैं.

दिलों में दफ़न कर के,
ज़िंदगी भर के अरमान.
वो सिर्फ हमारे लिए,
खुला आकाश छोड़ जाते हैं.

हमारी गलतियों पे भी सदा,
जो दुनिया के ताने झेल जाते हैं.
ज़माने के तंज़ सुनकर भी,
प्यार और मोहब्बत छोड़ जाते हैं.

हमने कितनी ही गुस्ताखियों से उनका,
दिल दुखाया हो भले लेकिन.
ये माँ-बाप ही हैं जो,
चोट सह कर भी दुआएं छोड़ जाते हैं.

© सुशील मिश्र.

  15/06/2014