असर
हम वो हैं जो हारकर
भी जीतने का हुनर रखते हैं,
मंजिल की हमें परवाह
नहीं,
क्योंकी हम वो हैं,
जो पावों में ही सफ़र
रखते हैं.
मुकद्दर में होगा तो
मिल ही जायेगी मंजिल,
और मिल भी गई तो क्या
करेंगे उसका,
क्योंकी हम तो वो
हैं,
जो अपने सफ़र में ही
असर रखते हैं.
साजिशें करके लोग
यहाँ मैदान मार लेते हैं,
और सोचते हैं की किसी
को कुछ पता ही नहीं.
पर हम वो हैं, जो ढकी
पलकों और बंद कानो से भी,
एक एक बात की खबर
रखते हैं.
मानते हैं की मिठाई
में,
स्वाद बहुत होता है,
पर हम जीभ की नहीं,
सेहत की फिकर रखते
हैं.
लाग-लपेट या चापलूसी
करके,
हम भी एक जगह टिके रह
सकते थे.
पर क्या करें,
हम वो हैं, जो
खुद्दारी का जिगर रखते है.
तीन पांच करके आजकल
लोग दौलत तो बहुत कमाते हैं,
पर इस दौरान वो अपनी
खुद की नज़रों से ही गिर जाते हैं.
और एक हम हैं, जिसकी
जेब भले खाली है,
पर हम अपने सिफर में
भी करोड़ों का असर रखते हैं.
ये सच है की झुकते तो
फायदे में रहते,
लेकिन क्या करे, हर
दर पे जो झुक जाए,
ऐसा सर नहीं अपना,
इसीलिए हम भरी भीड़
में भी एक अलग सा असर रखते हैं.
जा रहे हैं यहाँ से
कहीं और, और फिर वहां से भी कहीं और,
सर उठा के और धमक के
साथ बढ़ते जाना ही फितरत है मेरी.
क्योंके अब तो ज़माने
को भी ये मालूम है की हम वो हैं,
जो मुद्दतों तलक
लोगों के दिलों में असर रखते हैं.
इसीलिए हम भरी भीड़
में भी एक अलग सा असर रखते हैं.
हम वो हैं, जो
खुद्दारी का जिगर रखते है.
हम जीभ की नहीं, सेहत
की फिकर रखते हैं.
हम वो हैं, जो ढकी
पलकों और बंद कानो से भी,
एक एक बात की खबर
रखते हैं.
हम अपने सिफर में भी
करोड़ों का असर रखते हैं
हम तो वो हैं, जो
अपने सफ़र में ही असर रखते हैं.
हम वो हैं जो हारकर
भी जीतने का हुनर रखते हैं.
©
सुशील मिश्र.
03/01/2015