गहराई
हाँ,
ये मुझे भी मालूम है, कि जिनके आँखों में सपने और नज़र पंज़िल पे होती है,
वो
ज़िंदगी में पीछे मुड़कर देखने का तकल्लुफ़ नहीं उठाया करते.
मगर ये
ज़िंदगी है ज़नाब कोइ रेस नहीं, थोड़ी तसल्ली बरतें,
गुज़रे
मंज़रों से ही यहाँ सही रास्तों और मंजिलों की तफ्तीश होती है.
अच्छा
है वो ताउम्र मुझे पत्थर ही मानता रहा,
मुसलसल
मुझे जिम्मेदारियों का गट्ठर ही मानता रहा.
क्या
ज़रुरत है कि दुनिया जाने कि मेरे सीने में भी मोम सा दिल है,
खुश
हूँ के कम से कम वो समंदर को नदी तो मानता रहा.
गम है
कि बाहर से ही मुझे आंकती रही दुनिया,
बस
झरोखों से ही मुझे क्यों झांकती रही दुनिया.
कुछ ने
हिम्मत की, नज़दीक आये, तब जाके कहीं इल्म हुआ,
फिर तो
ताउम्र मुझे हैरत से बस ताकती रही दुनिया.
...सुशील
मिश्र.
18/05/2020