अहम्
तुम्हारा कद बड़ा हैं,
रसूख उंचा है,
तो क्या डर जाऊं?
अभी तुम इख्तदार में हो,
कुछ भी कर सकते हो,
क्या इसी बात पे सिहर जाऊं?
पता है हमें, कि तुम्हारा अहम्,
आजकल आसमान छू रहा है,
तो क्या करूं, ये
सुनके ही बिखर जाऊं?
हमें घुटनों पे लाने की, और
नीचा दिखाने की,
कोशिश तो तुमने सच में पुरजोर की है,
तो क्या इतने भर से मैं मर जाऊं?
कदम ज़मीन पे और सर आसमान में है मेरा,
सीना चौड़ा हमेशा ईमान में है मेरा,
मोहब्बत से बोलकर ही नहीं देखा उसने,
वरना तो मैं हद से भी गुज़र जाऊं.
वरना तो मैं हद से भी गुज़र जाऊं....
© सुशील
मिश्र
27/10/2023