दीपोत्सव
मन में कुटिलता हृदय में मलिनता,
रिश्तों के धागों में अब है जटिलता.
मधुर भावना से हो यदि सत्य का आग्रह,
दिलों से दिलों तक बहेगी सहजता.
अमावस घटा है, बहुत कालिमा है,
दुर्दान्त निष्ठुर की ही भंगिमा है.
विश्वास मन में भरत सा जगाएं,
युगों की मनुज से यही याचना है.
अंतः कि ज्योति जगत में प्रसारें,
युगों की मलिनता को अब तो बिसारें.
तमस का साम्राज्य तो एक जुगनू से हारा,
दीपोत्सव के मंगल से जग को निखारें.
...सुशील मिश्र
30/11/2016
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