दीवाली मनाएं
घना है अँधेरा मगर ज्योति
बनके,
दुर्गम डगर में खड़े हम
मिलेंगे.
अगर मन द्रवित है मिथ्याचरण
से,
सच के उजाले में हम ही
मिलेंगे.
करो याद अर्जुन की उस चेतना
को,
द्रवित हो खड़े रण में उस
भावना को,
तिमिर ही तिमिर जब उसे दीखता
था,
गलत ही गलत सब उसे सूझता था.
पराक्रम पराभव में ढलने लगी
थी,
शक्ति भी जिसकी अब अस्ताचली
हो गयी थी.
धर्म के पथ पे जब वो बेसहारा
हुआ था,
अपने ही मन से जब वो हारा
हुआ था.
तभी श्रीकृष्ण रोशनी बनके
आये,
अंधेरी घटा में किरण बनके
आये,
गिरते हुए को संभाला
उन्होंने,
दिया पार्थ को धर्म का उजाला
उन्होंने,
गलत और सही में था अंतर
बताया,
उन्हें पहचानने का गुण भी सिखाया,
तब कहीं धनञ्जय ने गाण्डीव
धारा,
तिमिर साधकों को था उसने
संहारा.
आओ दिया एक हम भी जलाएं,
भटके हुओं को डगर तो दिखाएँ.
एक दूजे के मन में विश्वास
जगा हम,
सारे जगत में दीवाली मनाएं.
© सुशील मिश्र
12/11/2023
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