Sunday, April 22, 2012


दिलों के दर्द की ये दास्ताँ तुमको सुनाता हूँ,
हिमालय से, समन्दर तक का फासला तुमको दिखाता हूँ,
बहुत तड़पन, चुभन, रुसवाइयां हैं साथ में फिर भी,
मोहब्बत की हकीक़त को मै यूँ ही गुनगुनाता हूँ.

© सुशील मिश्र

No comments: