Thursday, December 6, 2012

राम


राम

त्याग, समर्पण और साधना करता जो निष्काम,
झूठ, द्वेष, पाखण्ड, अधम से लड़ता जो संग्राम.
मातु, पिता, गुरुजन की सेवा में रत है दिन-याम,
मर्यादित आचरण गढे जो उसके मन में राम.


आज बहुत है कलुषित जन के मन का यह उद्यान,
पता नहीं क्यों उसको फिर भी इतना है अभिमान.
बहुत ज़रूरी है सबको हो मन की गति का ज्ञान,
करो प्रफुल्लित मन को अपने बोलो सीता-राम


जो अपना आचरण व्यस्थित रखकर करते काम,
छोटे हो या बड़े सभी को देते हों सम्मान.
अखिल विश्व के स्वामी का जो करता है यशगान,
उसका मंगल ही करते हैं सत्य प्रणेता राम.

© सुशील मिश्र.
०६/१२/२०१२