वादा -2
वो जो कल तक आधे के वादे पर भी राज़ी नहीं था,
मोहब्बत में वफ़ा की गहराई पे राज़ी नहीं था,
हाँ सही समझा आपने, मैं उसी की बात कर रहा हूँ,
जो कल तक चौराहों चौराहों पर इन्साफ का तराजू लिए,
आधे हक के खिलाफ लड़ रहा था,
और आपको, हमको, सभी को लड़ने के लिए प्रेरित कर रहा था.
कल तक तो उसकी बातों में सच्चाई लगती थी.
आधी मोहब्बत के बारे में दिये गये,
उसके विश्लेषण में गहराई लगती थी.
लेकिन अब हवाओं में ये बात तैरने लगी है,
कि उसके ज़ेहन में अब बदल आने लगी है.
उसने अब इन्साफ का तराजू छोड़,
खुदगर्जी का दामन थाम लिया है.
जिनके खिलाफ उसकी लड़ाई थी,
उन्हीं के हांथों अब उसने ज़ाम लिया है.
लड़ाई तो वो अब भी लड़ रहा है,
लेकिन सिर्फ अपने हक के लिए.
अब उसने समझौते के लिए उनकी तरफ हाथ बढ़ाया है,
लेकिन जनता ने उस कागज़ पर सिर्फ उसका नाम पाया है.
लड़ाई वो सबके लिए लड़ रहा था, ऐसा वो कह रहा था.
लेकिन समझौता सिर्फ वो अपने लिए कर रहा है,
और शर्त में आपको बाज़ी कि तरह चल रहा है.
खुद को खिलाड़ी और हमको प्यादा समझ बैठा है,
अपने गुरूर में आज वो बहुत ही ऐंठा है.
शर्त लगाईं उसने की उसे पूरा दे दो,
आधे पे वो राज़ी नहीं है,
लेकिन औरों के सवाल पर वो हल्के से मुस्कराया,
और फिर उनको ये बताया, कि वो सब तो भीड़ हैं.
इस भीड़ को वादा ज़रूर दो,
फिर उनको आधा दो या वो भी न दो,
उसमें कोई हर्जा नहीं है.
बस जनता को इस बात का इल्म ना हो,
की हमारे और आपके बीच में अब कोई पर्दा नहीं है.
की हमारे और आपके बीच में अब कोई पर्दा नहीं है.....
© सुशील मिश्र.
१५/१२/२०१२
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