हौसला
उदासियाँ तलाशती रहीं हमें रंजिशों के साथ,
खिलखिलाता चेहरा देख कर हताश हो गईं.
गम तो बहुत थे सच में, इस ज़िंदगी में पर,
हिम्मत हमारी देखकर परवाज़ (उड़ना) हो गईं.
कांटे बहुत थे राह में और मंजिल का न पता,
भटकते थे बियाबान में पर छोड़ा ना हौसला.
भरोसा था हमको खुद पे और कुदरत पे ऐतबार,
कि हिम्मत के साथ चलेगा ये ज़िंदगी का सिलसिला.
हालात अब तो ऐसे है कि दिखते ना धूप छाँव,
रुसवाइयां इतनी बढ़ीं कि उठते ही नहीं पाँव.
उलझन यही तो अब बस ज़िंदगी में है,
सफीने (पतवार) तो हमने डुबो दिये अब चले कैसे नाव.
मुफ़लिसी (गरीबी) में बीती अपनी ज़िंदगी तमाम,
ग़ुरबत (कठिन समय) ने भी नचाया जैसे उसका हूँ गुलाम.
मैं भी हमेशा चलता रहा हवा के मानिंद (तरह),
सब कुछ सहा जो भी मिला वो ज़िल्लत हो या इनाम.
हाँ नाव है मझधार में पर आंखों में है किनारा,
कूदेंगे अब भँवर में मालिक का है सहारा.
मुकद्दर तेरा तू ही है इस बात को समझ ले,
कल आसमाँ में चमकेगा तेरे नाम का सितारा.
दुनिया को रोशनी से लबरेज़ तू करेगा,
आदर्श संस्कृति का परिवेश तू करेगा.
कर लें जिन्हें करनीं है कितनी भी खुराफातें,
ताकत से हौसले का अभिषेक तू करेगा.
© सुशील मिश्र.
28/01/2013