Monday, February 25, 2013

उम्मीद



उम्मीद

अमीरी और हुकूमत (राजा) का,
बड़ा दिलचस्प माँकटेल है ये.
के दोनों मिलकर चमन में,
गरीबी और मुफलिसी (कमजोरी) का कॉकटेल बनाते हैं.
अमीरी ने गरीबी को, बड़ी हिकारत (घृणा) से देखा है.
और हुकूमत ने जनता को भी, कुछ वैसा ही रखा है.
मगर उसकी (ईश्वर) साजिशों से कोई नहीं वाकिफ़,
की कैसे?
मुफलिसी फटे कम्बल में भी, जाड़ा (सर्दी) निकाल देती है,
और हुकूमत अमीरी के रूम हीटर में भी,
कडाके की सर्दी का एहसास करती है.
बहुत बेचैन हो उठता है हुकूमत का दिल,
जब गरीबी मुफलिसी के साये में, फुटपाथ पर चैन से सोती है.

दिलों में दर्द उठना लाज़मी (ज़रूरी) है, ऐ वतन वालों,
कोई रोता नहीं जब लाज लुटती है यहाँ, सड़कों पर बिटिया की,
हाँ, आजकल ट्रेंड में है तो, कैंडल ज़रूर जला आते हैं कुछ.
मगर हाल ही में पता चला कि, हुकूमत में कुछ माँयें ऐसी भी होती हैं,
जो बच्चे के युवराज बनने पर भी रोया करती हैं.
ये आँखें नम नहीं होतीं जब कश्मीर जलता है,
ये आँखें नम नहीं होतीं जब सिक्किम सुलगता है,
ये आँखें नम नहीं होतीं जब दंगा भड़कता है,
ये आँखें नम तभी होगीं जब कोई आतंकी मरता है.
समय अब भी बचा है कुछ तुम्हारे पास वतन वालों,
माँकटेल और कॉकटेल की सियासत को जला डालो.
वो देखो गरीब की आँख में भी उम्मीद टिमटिमाती है,
उसी उम्मीद के सूरज को लेकर,
तरक्की और खुशी का एक आशियाँ बना डालो.

© सुशील मिश्र.
    25/02/2013

Wednesday, February 20, 2013

राह और मंजिल



राह और मंजिल

कंटक हों ना जिन राहों में मुझको उनकी चाह नहीं,
सीधे सादे रस्तों पे चलने की कोई चाह नहीं.
अंधड़, आतप, बारिश, हिमगिरी जब तक ना टकरायें मुझसे,
ईश्वर की सौगंध मुझे उस मंजिल की भी चाह नहीं.


क्या पाना उस मंजिल को जो संघर्षों के बिना मिले,
समझो साजिश है माली की पुष्प बिना यदि पेड़ मिले.
मंजिल का सब खेल है माना, पर राहें तो राहें हैं,
जो राहों को इज़्ज़त देते मंजिल उनको सदा मिले.


मंजिल मंजिल करते हो, बोलो मंजिल में क्या रक्खा,
माना मंजिल पा ही लिया फिर जीवन में है क्या रक्खा.
जब तक आँखों में सपने है, और कदम तुम्हारे राहों पर,
ये समझो तुमने मानवता की सेवा का है व्रत रक्खा.


जैसे हम तुम सपने देखा करते सुखमय जीवन के.
वैसे ही सैनिक, किसान के सपने होते अनुपम से.
एक हमारे प्राण बचाता दूजा देश बचाता है,
मंजिल सबको दिखलाकर वो राह स्वयं बन जाता है.

भारत का कल अब सुदृढ़ हो इसके निमित्त कुछ काम करें,
आओ पथ को मजबूत करें हम चिन्तन मंथन का काम करें.
मंजिल मिलने पर रुकें नहीं अब नये रास्ते खोजें हम,
बलिदानों की परिपाटी से फिर नवयुग का निर्माण करें.


आओ रस्ते गढ़ें जिन्हें सदियों तक की पहचान मिले,
नज़र रहे आकाशों में पर धरती को पूरा मान मिले.
संपदा भुवन की चरणों में हो इसकी मुझको चाह नहीं,
पर पीड़ित से गर अन्याय हुआ तो ब्रह्मा की भी परवाह नहीं.


कंटक हों ना जिन राहों में मुझको उनकी चाह नहीं,
सीधे सादे रस्तों पे चलने की कोई चाह नहीं.
अंधड़, आतप, बारिश, हिमगिरी जब तक ना टकरायें मुझसे,
ईश्वर की सौगंध मुझे उस मंजिल की भी चाह नहीं.

© सुशील मिश्र.
    20/02/2013

Tuesday, February 19, 2013

आतंक मचाने वालों को हम आज मिटाने आये हैं.


आतंक मचाने वालों को हम आज मिटाने आये हैं.

हम सागर की लहरों में तूफ़ान उठाने आये हैं,
आतंक मचाने वालों को हम आज मिटाने आये हैं.

याद करो वो कुरुक्षेत्र वो हल्दी घाटी कि गाथा,
बलिदानों से यहाँ सदा उन्नत रहता अपना माथा,
इतिहासों की विजयी गाथा हम तुम्हे सुनाने आये हैं,
आतंक मचाने वालों को हम आज मिटाने आये हैं.

याद करो वो राजधर्म जो रघुकुल की परिपाटी थी,
मात पिता गुरुवृन्द सभी की सेवकाई (सेवा) की जाती थी.
संस्कारों में निहित मर्म का दर्पण दिखलाने आये हैं,
आतंक मचाने वालों को हम आज मिटाने आये हैं.

भक्ति-भावना, त्याग-समर्पण, दान-धर्म की परिपाटी,
वन्दनीय है कर्ण, हर्ष और शिवि की जन्मदायिनी माटी.
राजधर्म की परिभाषा हम याद दिलाने आये हैं,
आतंक मचाने वालों को हम आज मिटाने आये हैं.

वीर शिवा सा हिम्मत, ज़ज्बा, शौर्य दिखाना होगा,
संख्या नहीं सामर्थ्य का करतब दिखाना होगा.
रण कौशल में कूटनीति का पाठ पढ़ाने आये हैं,
आतंक मचाने वालों को हम आज मिटाने आये हैं.

इतिहासों की विजयी गाथा हम तुम्हे सुनाने आये हैं,
संस्कारों में निहित मर्म का दर्पण दिखलाने आये हैं.
राजधर्म की परिभाषा हम याद दिलाने आये हैं,
रण कौशल में कूटनीति का पाठ पढ़ाने आये हैं.

हम सागर की लहरों में तूफ़ान उठाने आये हैं,
आतंक मचाने वालों को हम आज मिटाने आये हैं.

© सुशील मिश्र.
19/02/2013

Friday, February 15, 2013



ज्ञान का विज्ञान का संधान दो माँ शारदे,
वाणी  सुसंस्कृत बन सके वो ज्ञान दो माँ  शारदे।
संगीत,संस्कृत, संस्कृति का मानसिक संबल मिले,
स्पष्ट सुरभित लेखनी का वरदान दो माँ शारदे।

© सुशील मिश्र।
    15/02/2013



Sunday, February 3, 2013




जो राहों से प्यार ना करते, केवल मंज़िल को ही तकते,
तुम ये अच्छी तरह समझ लो वो ही राहों से हैं भटके.

....सुशील मिश्र.
  03/02/2013