उम्मीद
अमीरी और हुकूमत (राजा) का,
बड़ा दिलचस्प माँकटेल है ये.
के दोनों मिलकर चमन में,
गरीबी और मुफलिसी (कमजोरी) का कॉकटेल बनाते हैं.
अमीरी ने गरीबी को, बड़ी हिकारत (घृणा) से देखा है.
और हुकूमत ने जनता को भी, कुछ वैसा ही रखा है.
मगर उसकी (ईश्वर) साजिशों से कोई नहीं वाकिफ़,
की कैसे?
मुफलिसी फटे कम्बल में भी, जाड़ा (सर्दी) निकाल देती है,
और हुकूमत अमीरी के रूम हीटर में भी,
कडाके की सर्दी का एहसास करती है.
बहुत बेचैन हो उठता है हुकूमत का दिल,
जब गरीबी मुफलिसी के साये में, फुटपाथ पर चैन से सोती है.
दिलों में दर्द उठना लाज़मी (ज़रूरी) है, ऐ वतन वालों,
कोई रोता नहीं जब लाज लुटती है यहाँ, सड़कों पर बिटिया की,
हाँ, आजकल ट्रेंड में है तो, कैंडल ज़रूर जला आते हैं कुछ.
मगर हाल ही में पता चला कि, हुकूमत में कुछ माँयें ऐसी भी
होती हैं,
जो बच्चे के युवराज बनने पर भी रोया करती हैं.
ये आँखें नम नहीं होतीं जब कश्मीर जलता है,
ये आँखें नम नहीं होतीं जब सिक्किम सुलगता है,
ये आँखें नम नहीं होतीं जब दंगा भड़कता है,
ये आँखें नम तभी होगीं जब कोई आतंकी मरता है.
समय अब भी बचा है कुछ तुम्हारे पास वतन वालों,
माँकटेल और कॉकटेल की सियासत को जला डालो.
वो देखो गरीब की आँख में भी उम्मीद टिमटिमाती है,
उसी उम्मीद के सूरज को लेकर,
तरक्की और खुशी का एक आशियाँ बना डालो.
© सुशील मिश्र.
25/02/2013
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