Thursday, August 15, 2013

स्वतंत्रता

स्वतंत्रता


पकड़ तिरंगा लाल किले पर झंडा जब फहराते हैं,
जश्ने  आज़ादी में फिर क्यों भूल सदा ये जाते हैं.
सड़कों गलियों फुटपाथों पर देश आज भी नंगा है,
तब भी देखो देश के मुखिया रटा रटाया गाते है.

तुम स्वतंत्र हो फिर भी तुमको क्यों होता महसूस नहीं,
राष्ट्र वन्दना करने की क्या तुममे कोई भूख नहीं.
यह सवाल जब राष्ट्र प्रधान साल में एक दिन करता है,
तुम भी कह दो आडम्बर का मुझको कोई शौक नहीं.

सड़सठ बरस बीतने पर भी मुद्दे वही पुराने क्यों?
बेबस बेकल बदकारी के फिर से वही तराने क्यों?
रोटी तक जो दे ना पाये पैंसठ सड़सठ सालों में,
भारत वही सजायेंगे फिर इतने गलत फ़साने क्यों?

देश की इज्जत दो कौड़ी की जिनके शासन काल हुई,
तिब्बत और काश्मीर की धरती जिनके कारण नीलाम हुई.
सीमा को तो आज तलक महफूज़ नहीं रख पाये जो,
यही लोग हैं जिनके कारण भरत भूमि बदहाल हुई.

भारत की जय, भारत की जय, नारा हमसे लगवाते है,
फिर पीछे से भारत को बदनाम यही कर जाते हैं.
राष्ट्रभक्ति में भी देखो अब गुणा भाग ये लाए हैं,
वंदे मातरम संसद में ही वैकल्पिक बनवाते हैं.

अब तो जागों वीर सपूतों समय बहुत प्रतिकूल है,
राजनीति इस देश की देखो बनी स्वयं ही शूल है.
कुछ दिन यदि चलाएंगे जो यही देश के राज को,
देश गर्त में जायेगा बस यही बात का मूल है.

नहीं चाहिए जश्न हमें अब नहीं चाहिये उद्बोधन,
नहीं चाहिये अब तो हमको केवल मीठे संबोधन.
स्वास्थय, ज्ञान और राष्ट्र सुरक्षा की जो जिम्मेदारी ले,
लाल किले से देश चाहता केवल उसका उदघोषण.

© सुशील मिश्र.

15/08/2013

No comments: