आँखें
कौन कहता है की जुबां
से ही शिकायत होती है,
यहाँ तो आँखें भी
हंगामे मचा देती हैं.
लब तो बेचारे बोलकर
चुप हो गए हैं अब,
दानिस्ता ये आँखें
कुछ बोलती और कुछ बोलती नहीं.
लब ने कहा, सब ने
सुना, समझा वही जो उसने कहा,
पर आँखों की बातें
कुछ अजीब सी हैं यार.
बोलती ही रहती हैं ये
दिन-ओ-रात, पर समझा नहीं
क्या क्या कहा, किससे
कहा, किससे नहीं.
आँखों की बात, या
खुदा, बड़ा तिलिस्म है,
मोहब्बत, अदावत,
खुलूस का बे-साया जिस्म है.
जुबां से बोलकर तो
उसने खींच दी दिखती लकीर,
आँखों से भी उसने खीची
हाँ लकीरें हज़ार, पर दिखती नहीं.
लब तो बेचारे बोलकर
चुप हो गए हैं अब,
दानिस्ता ये आँखें
कुछ बोलती और कुछ बोलती नहीं.
दानिस्ता = (जानबूझकर/deliberately),
तिलिस्म = (जादू/magic), अदावत = (दुश्मनी/ill-will)
© सुशील मिश्र
21/11/2014
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