किस काम का
भूखा अकुलाता यौवन
भी,
बोलो भला किस काम का.
बिन बरसातों का सावन,
बोलो भला किस काम का.
लक्ष्य निश्चित ही
नहीं,
जो कर सके खुद के
लिए.
गाँडीव उनको मिल भी
जाए,
तो भी भला किस काम
का.
सरहद बड़ी सेना बड़ी,
मुस्तैद है वो हर
घड़ी.
पर भाव दिल में यदि
नहीं,
तो कारवां किस काम
का.
कफ़न तो सर पर सजाये,
वो दिन रात सीमा पर
खड़ा.
सरकार हिम्मत ना
जुटाए,
तो काफ़िला किस काम
का.
आँखों पे पर्दा पड़ा
है,
और बुद्धि भी है
भ्रमित जिसकी.
लाख दर्पण तुम दिखा
दो,
ये सब नहीं कुछ काम
का.
समय का साथ और खुद पर
विश्वास,
जिसने नहीं जाना समझ
ले.
पारस उन्हें गर मिल
भी जाए,
तो भी भला किस काम
का.
© सुशील
मिश्र.
27/10/2014
No comments:
Post a Comment