उम्र का भरम
ये भरम है ज़माने का,
कि उम्र बढ़ने पर बातें कम समझ
आती हैं.
असल में यही तो वो वक्त है,
जब आपकी बातें ही ग़ज़ब ढाती
है.
मोहब्बत, इबादत, अदावत,
खिलाफत,
इस उम्र तक तज़ुर्बे का भंडार
हो जाती हैं.
कायदे से यही वो उम्र है, जब,
तस्वीर की बारीकी ठीक से नज़र
आती है.
तो मायूस न हो मन,
उम्र तो फ़कत एक आंकड़ा है.
इस उम्र में आकर ही, असल में
तुम्हें,
आज की पीढ़ी का सही मुस्तकबिल
नज़र आता है.
© सुशील मिश्र
29/11/2019
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