Saturday, December 15, 2012

वादा -2


वादा -2

वो जो कल तक आधे के वादे पर भी राज़ी नहीं था,
मोहब्बत में वफ़ा की गहराई पे राज़ी नहीं था,
हाँ सही समझा आपने, मैं उसी की बात कर रहा हूँ,
जो कल तक चौराहों चौराहों पर इन्साफ का तराजू लिए,
आधे हक के खिलाफ लड़ रहा था,
और आपको, हमको, सभी को लड़ने के लिए प्रेरित कर रहा था.


कल तक तो उसकी बातों में सच्चाई लगती थी.
आधी मोहब्बत के बारे में दिये गये,
उसके विश्लेषण में गहराई लगती थी.
लेकिन अब हवाओं में ये बात तैरने लगी है,
कि उसके ज़ेहन में अब बदल आने लगी है.
उसने अब इन्साफ का तराजू छोड़,
खुदगर्जी का दामन थाम लिया है.
जिनके खिलाफ उसकी लड़ाई थी,
उन्हीं के हांथों अब उसने ज़ाम लिया है.


लड़ाई तो वो अब भी लड़ रहा है,
लेकिन सिर्फ अपने हक के लिए.
अब उसने समझौते के लिए उनकी तरफ हाथ बढ़ाया है,
लेकिन जनता ने उस कागज़ पर सिर्फ उसका नाम पाया है.
लड़ाई वो सबके लिए लड़ रहा था, ऐसा वो कह रहा था.
लेकिन समझौता सिर्फ वो अपने लिए कर रहा है,
और शर्त में आपको बाज़ी कि तरह चल रहा है.
खुद को खिलाड़ी और हमको प्यादा समझ बैठा है,
अपने गुरूर में आज वो बहुत ही ऐंठा है.

शर्त लगाईं उसने की उसे पूरा दे दो,
आधे पे वो राज़ी नहीं है,
लेकिन औरों के सवाल पर वो हल्के से मुस्कराया,
और फिर उनको ये बताया, कि वो सब तो भीड़ हैं.
इस भीड़ को वादा ज़रूर दो,
फिर उनको आधा दो या वो भी न दो,
उसमें कोई हर्जा नहीं है.
बस जनता को इस बात का इल्म ना हो,
की हमारे और आपके बीच में अब कोई पर्दा नहीं है.
की हमारे और आपके बीच में अब कोई पर्दा नहीं है.....

© सुशील मिश्र.
१५/१२/२०१२ 

Friday, December 14, 2012

वीरता


वीरता

राष्ट्रभावना और समर्पण जिनके रग रग में अंकित,
जिनके साहस और वीरता से है राष्ट्र सुमन सुरभित.
ऐसे अभिमानी वीरों से दुश्मन बहुत डरा करते,
क्योंकी,
प्राण न्योछावर करने में वो देर नहीं किया करते.

देशभक्ति का ज्वार सदा जिनके मन में लहराता है,
मातृभूमि के लिए सदा मस्तक जिनका झुक जाता है.
सीमायें सरहद की जिनके मन में लक्ष्मण रेखा सी अंकित,
समय सदा उन बलिदानों को उन्नत स्वर में गाता है.

देख तिरंगा जिनके मन में नई तरंगें उठती हैं,
दुश्मन की हर चाल भी जिनकी हिम्मत से ही बुझती है,
ऐसे जांबाजों की हरदम ऋणी रहेगी यह माटी,
जिनके बलिदानी करतब से देश की इज़्ज़त बढ़ती है.

हमनें क्यों ऐसे भुला दिया सत्तावन के बलिदानों को,
हमने क्यों ऐसे भुला दिया कारगिल के वीर जवानों को,
वक्त सदा यह प्रश्न हमारे सम्मुख रखता जायेगा, कि
हमने क्यों ऐसे भुला दिया संसद के लहू लुहानों को.

है समय यही जब सुख वैभव से थोड़ा सा बाहर आयें,
राजनीति के जीव जन्तुओं को भी दर्पण दिखलायें.
कि, केवल मेजों पर चर्चा से राष्ट्र नहीं रक्षित होते,
अपनी युवा पीढ़ी को हम यही बात अब समझाएं.
कि,

राष्ट्रभावना और समर्पण जिनके रग रग में अंकित,
जिनके साहस और वीरता से है राष्ट्र सुमन सुरभित.
ऐसे अभिमानी वीरों से दुश्मन बहुत डरा करते,
क्योंकी,
प्राण न्योछावर करने में वो देर नहीं किया करते.
प्राण न्योछावर करने में वो देर नहीं किया करते.


© सुशील मिश्र.
१४/१२/२०१२



Saturday, December 8, 2012

वादा


वादा


मुहब्बत कि ख्वाहिश में सदियाँ गुजारीं,
अदावत भी उनकी हमने सारी भुला दीं.
यही सोचकर राहें तकते रहे हम,
वफ़ा ही करेंगे ये कहते रहे हम.


बहुत अर्से बाद उनका संदेशा भी आया,
हमने ये सोचा कि वादा निभाया.
मगर आदतन उसने बिजली गिरा दी,
मोहब्बत निभाई मगर आधी-आधी.


ये आधा हमें बहुत नागवार गुजरा,
इतने इंतज़ार पर भी ना ये सुधरा.
आधे की कोई ज़रूरत नहीं थी,
पूरे से हमको मुहब्ब्बत हुई थी.


जो किश्तों में लोगे तुम सब्र की परीक्षा,
कहीं तुमको मांगनी पड़ जाये न भिक्षा.
तो वापस लो अपनी ये किश्तों की यारी,
उतारो ये अपने दिल की खुमारी.


ज़रूरी नहीं के तुम कल ही मिलो,
इतना लिया कुछ समय और लो.
मगर जब मिलो पूरे मन से मिलो,
हम तभी समझेंगे तुमने यारी निभा दी.


मुहब्बत कि ख्वाहिश में सदियाँ गुजारीं,
अदावत भी उनकी हमने सारी भुला दीं.

मगर आदतन उसने बिजली गिरा दी,
मोहब्बत निभाई मगर आधी-आधी.

© सुशील मिश्र.
 07/12/2012



  

Thursday, December 6, 2012

राम


राम

त्याग, समर्पण और साधना करता जो निष्काम,
झूठ, द्वेष, पाखण्ड, अधम से लड़ता जो संग्राम.
मातु, पिता, गुरुजन की सेवा में रत है दिन-याम,
मर्यादित आचरण गढे जो उसके मन में राम.


आज बहुत है कलुषित जन के मन का यह उद्यान,
पता नहीं क्यों उसको फिर भी इतना है अभिमान.
बहुत ज़रूरी है सबको हो मन की गति का ज्ञान,
करो प्रफुल्लित मन को अपने बोलो सीता-राम


जो अपना आचरण व्यस्थित रखकर करते काम,
छोटे हो या बड़े सभी को देते हों सम्मान.
अखिल विश्व के स्वामी का जो करता है यशगान,
उसका मंगल ही करते हैं सत्य प्रणेता राम.

© सुशील मिश्र.
०६/१२/२०१२

Wednesday, December 5, 2012





मुकद्दर का गर सहारा ही होता,
तो सिकंदर यूँ  ऐसे हारा ना होता.
बहुत फासला था धरा और गगन में,
अगर रोशनी का नज़ारा ना होता.

© सुशील मिश्र.
05/12/2012

Wednesday, November 21, 2012

आरज़ू


आरज़ू

हम भावना में बहे जा रहे हैं,
समंदर के माफिक सहे जा रहे हैं.
दिलों की तमन्ना दिलों में बसाए,
यही आरज़ू हम किये जा रहे हैं.
समंदर के माफिक..........

वो प्यारा सा मौसम कहाँ खो गया है,
मोहब्बत का सावन कहाँ खो गया है.
तुम्हारे दरश को तो सदियाँ गुजारीं,
ये पलकें नहीं हमने कबसे निखारीं.
मालुम है हमको नहीं तुम मुडोगे,
मगर आस में हम जिए जा रहे है.
समंदर के माफिक............

पता ये चला है हवाओं से हमको,
खबर ये मिली है फजाओं से हमको.
हमारे खतों को जला तुम रहे हो,
वफाओं की यादें मिटा तुम रहे हो.
रहो तुम हमेशा ही खुशहाल फिर भी,
दुआएँ यही हम किये जा रहे हैं.
समंदर के माफिक...............

मज़बूत हैं अब दिलों में इरादे,
मुमकिन नहीं कोई इनको हिला दे.
ये धरती ये अम्बर सितारे जहां के,
कहीं भूल जाएँ ना मायने वफ़ा के.
तुम आओगे ईक दिन ये दावा है मेरा,
इबादत वफ़ा की किये जा रहे हैं.
समंदर के माफिक..........

दिलों की तमन्ना दिलों में बसाए,
यही आरज़ू हम किये जा रहे हैं.
समंदर के माफिक..........

© सुशील मिश्र.

Monday, November 19, 2012




तू सितमगर है ये बात सभी जानते हैं,
और तू ज़ालिम भी बहुत है ये भी मानते हैं.
हमें तुझसे नहीं है कोई गिला शिकवा,
क्योंकी हम भी अपने हौसलों को बाखूब पहचानते हैं.

© सुशील मिश्र.

Friday, November 16, 2012







जिनको ये खबर नहीं की रंग क्या है ज़लज़ले का,
उन्हें एक बार समंदर में उठता तूफ़ान दिखाओ.
और जिन्हें ये पता नहीं कि दर्द क्या है फासले का,
उन्हें एक बार अपनों से दूर छोड़ के आओ.

© सुशील मिश्र.

Thursday, November 15, 2012

उलझन


उलझन

पत्थरों में यहाँ जान आने लगी,
फिजायें भी फिर गुनगुनाने लगीं.
तुम नज़र से नज़र अब मिला भी तो लो,
मोहब्बत तुम्हें फिर बुलाने लगी.

ये देखो सजन ज़िंदगी गा रही,
कहीं दूर से फिर सदा आ रही.
तुम्हारे थे हम तुम्हारे ही हैं,
वो वफ़ा वो कासम याद अब आ रही.

फूल ने कांटों से आज क्या है कहा?
पंथ ने पथिक को क्या है बतला दिया?
फिर नज़ारे भी बेचैन होने लगे
जब सफीने (पतवार) ने मझधार को दिल दिया.

ये हांथों की रेखा में दिखता नहीं,
ये जुबां पे भी जल्दी से आता नहीं.
दिल की गहराइयों में सुकूं जिसको है,
प्यार ही क्या है जो, रब मिलाता नहीं.

पत्थरों में यहाँ जान आने लगी,
फिजायें भी फिर गुनगुनाने लगीं.
तुम नज़र से नज़र अब मिला भी तो लो,
मोहब्बत तुम्हें फिर बुलाने लगी.


© सुशील मिश्र.
15/11/2012

Monday, November 12, 2012

दीपावली





दीपावली


दिलों का अन्धेरा अगर मिटने पाये,
अज्ञानरूपी तमस छंट ही जाये.
अमावस बहुत देर तक ना रहेगी,
दिये से दिया जो अगर ज्योति पाये.

बहुत कालिमा है चतुर्दिक जगत में,
अंधेरों से यारी जो करते विपद में.
उन्हें जुगनूंओं से प्रेरणा लेनी होगी,
कि अकेले ही उजाला करेंगे जगत में.

उठो आज के दिन ये संकल्प कर दें,
विद्या, विभा का नया मंत्र भर दें,
कोई बाल गोपाल वंचित रहे ना,
उन्हें आज शिक्षा का उजला चमन दें.

तो ये दीपक सदा ही दमकते रहेंगे,
पूरे भुवन को प्रकाशित करेंगे.
नया आस विश्वास मन में जगाकर,
सम्पूर्ण  जग में दीपावली रचेंगे.

© सुशील मिश्र.
12/11/2012






Sunday, November 11, 2012

नमन





नमन

आज अर्चन कर रहे हैं हम सभी उन्मुक्त मन से,
वन्दना भी हो रही है भावनाओं के सुमन से.
लोभ लालच त्यागकर अब स्वयं का निर्माण कर लें,
संपदा वैभव भुवन की मिल रही श्री हरि नमन से.

ज्ञान में विज्ञान में तुम सकल समता भाव रखना,
मित्रजन होँ या अपरिचित आचरण अपना परखना.
मार्ग दुर्गम है बहुत इस साधना के क्षेत्रफल का,
श्री हरि को ह्रदय में धर कंटकों में तुम विचरना.

ध्येय ओझल हो न जाए आपके चंचल नयन से,
साधना भी डिग ना पाए भावनाओं की छुअन से.
मन, ह्रदय और आवरण (तन) को एक माला में पिरोकर,
श्री हरि का ध्यान अब हम कर सकें स्तुति नमन से.

© सुशील मिश्र.

Friday, November 9, 2012





पंथ पे हो नज़र हरदम,
लक्ष्य में गर नहीं हो भ्रम.
प्रकृति भी फिर साथ देगी,
यदि पूर्ण मन से हो समर्पण.

© सुशील मिश्र.



यूँ तो ऐतबार करना किसी पर भी,
होता है बेहद मुश्किल.
बहुत दर्द होता है,
जब आपका दोस्त ही निकले संगदिल.
फिर भी ये सोचकर की चलो,
रहीं होंगी उसकी भी कुछ मज़बूरियाँ खुद की.
हमने फिर से दोस्ती हाथ बढ़ाया,
क्योंकी वो भी जानता है कि हम हैं बहुत खुशदिल.

© सुशील मिश्र.

Thursday, November 8, 2012





कुछ लोग हैं जो वक्त की रफ्तार में शामिल,
और कुछ लोग हैं जो वक्त को रफ़्तार देते हैं.
इस वक्त और रफ़्तार की जंग में सुशील,
लगाम जिनके हांथों वो ही शहरयार होते हैं.
शहरयार = बादशाह

© सुशील मिश्र.