आरज़ू
हम भावना में बहे जा
रहे हैं,
समंदर के माफिक सहे
जा रहे हैं.
दिलों की तमन्ना
दिलों में बसाए,
यही आरज़ू हम किये जा
रहे हैं.
समंदर के
माफिक..........
वो प्यारा सा मौसम
कहाँ खो गया है,
मोहब्बत का सावन कहाँ
खो गया है.
तुम्हारे दरश को तो
सदियाँ गुजारीं,
ये पलकें नहीं हमने
कबसे निखारीं.
मालुम है हमको नहीं
तुम मुडोगे,
मगर आस में हम जिए जा
रहे है.
समंदर के
माफिक............
पता ये चला है हवाओं
से हमको,
खबर ये मिली है फजाओं
से हमको.
हमारे खतों को जला
तुम रहे हो,
वफाओं की यादें मिटा
तुम रहे हो.
रहो तुम हमेशा ही
खुशहाल फिर भी,
दुआएँ यही हम किये जा
रहे हैं.
समंदर के
माफिक...............
मज़बूत हैं अब दिलों
में इरादे,
मुमकिन नहीं कोई इनको
हिला दे.
ये धरती ये अम्बर
सितारे जहां के,
कहीं भूल जाएँ ना
मायने वफ़ा के.
तुम आओगे ईक दिन ये
दावा है मेरा,
इबादत वफ़ा की किये जा
रहे हैं.
समंदर के
माफिक..........
दिलों की तमन्ना
दिलों में बसाए,
यही आरज़ू हम किये जा
रहे हैं.
समंदर के
माफिक..........
© सुशील मिश्र.
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