Friday, November 2, 2012




कुछ हारों में जीत छिपी है, ऐसा चिन्तन क्यों न करें,
जो सत्य प्रचारित नहीं हुआ उसका अभिनन्दन क्यों न करें,
झूठ, फरेब, दर्द, दावानल जब सुरसा सा मुह खोले हैं,
सत्य, अहिंसा, त्याग, समर्पण जैसा वंदन क्यों न करें.

©सुशील मिश्र.

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