राष्ट्रवंदन
राष्ट्रवंदन की प्रथा
को हम सभी पोषित करेंगे.
पंथ सुरभित हो सके वह
पुष्प अब रोपित करेंगे.
दुःख दावानल जगत में
व्याधियों का घर बना है,
संगठन को भूल कर मानस
यहाँ आकुल पड़ा है.
भोग लिप्सा अन्तसों
में इस तरह जब घर बना ले,
है यही उपयुक्त क्षण
हम आत्ममार्जन अब करेंगे.
पंथ सुरभित हो सके..........................................
संस्कृति का क्षरण
देखो आज तो चहुंओर होता,
ज्ञान वैभव का निरादर
आज तो पुरज़ोर होता.
तमस ही जब ज़िंदगी का
एक अविरल रूप ले ले,
तब सुखद संकल्पना से
जगत आलोकित करेंगे.
पंथ सुरभित हो सके..........................................
कुछ नये की चाह में
अब मूल हमसे दूर होता,
यज्ञ वंदन भूलकर मानव
नये उत्सव पिरोता.
स्वयं के हित
चिन्तनों में आज हैं हम देश भूले,
प्रण यही अब हो हमारा
राष्ट्र को उन्नत करेंगें.
पंथ सुरभित हो सके.........................................
राष्ट्रवंदन की प्रथा
को हम सभी पोषित करेंगे.
पंथ सुरभित हो सके वह
पुष्प अब रोपित करेंगे.
© सुशील मिश्र.
18/03/2013
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