Friday, March 22, 2013

नाम


नाम

कल नाम क्या था हमारा इस जहां में,
कोई नहीं जानता,
कल नाम क्या होगा तुम्हारा इस जहां में,
कोई नहीं जानता.
ये तो फितरत की पाकीज़गी है,
जो महकी थी कल भी और महकेगी कल भी.
नहीं तो हमारे जिस्म की मिट्टी कहाँ थी इस जहां में,
कोई नहीं जानता.

ये सब उसका करम है,
तभी तो लोग मानते हैं हमें इस जहां में,
और हमें लगता है की हमको,
हमारे हुनर से सब पहचानते हैं इस जहां में.
सोचो इसी ज़मीं पर,
कितने बेनाम से लोग रहा करते है.
उसकी हमपर दरियादिली तो देखो,
के लोग हमको हमारे नाम से जानते हैं इस जहां में.

© सुशील मिश्र.
    22/03/2013

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