सियासत का रंग
ज़माना तो वैसे भी किसी का सगा नहीं होता,
तटस्थ रहा है हमेशा किसी के लिए बेवफा नहीं होता.
ये तो दिल है जो उनसे वफ़ा की आस लगाए बैठा है,
नहीं तो ये मज़मा भी हमेशा खफ़ा नहीं होता.
एक ज़माना था जब हम भी उनकी मुस्कुराहट पे,
दिलो-जाँ निसार करते थे.
और हमें इस बात का यकीन भी था,
कि वो केवल हमपर ही ऐतबार करते थे.
मुस्कराहटें बेदाम बेमिसाल थीं उनकी,
ऐसा दावा था हमारा.
वो तो हमें बहुत बाद में पता चला कि हम अकेले नहीं हैं,
उनके मुआमले में ऐसे दावे तो हजार किया करते थे.
मुकद्दर बांचने वालों ने बहुत पहले बताया था मुझे,
की यहाँ कोई किसी का हमेशा दुश्मन नहीं होता.
और ये तो सियासत का बहुत पुराना फलसफा है,
की यहाँ पर दोस्त भी कोई हमेशा नहीं होता.
एक हम है जो निकले थे बारिश में ये सोचकर,
कि ज़माने से अपने आंसू छुपा ले जायेंगे.
मगर हम ये भूल गये की ये तो साहूकारों की बस्ती है,
यहाँ कभी भी असल और ब्याज का हिसाब एक सा नहीं होता.
ज़माना तो वैसे भी किसी का सगा नहीं होता,
तटस्थ रहा है हमेशा किसी के लिए बेवफा नहीं होता.
ये तो दिल है जो उनसे वफ़ा की आस लगाए बैठा है,
नहीं तो ये मज़मा भी हमेशा खफ़ा नहीं होता.
© सुशील मिश्र.
24/03/2013
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