पथिक
हाँथ की इन लकीरों
में,
होगा तुम्हें ऐतबार
बहुत.
किस्मत भी देगी साथ
तेरा,
इसका भी होगा ऐतबार
बहुत.
हे पथिक तू रास्तों
पे,
ठीक से चलना तो सीख.
हाँथ की लकीरें नहीं,
किस्मत भी नहीं,
खुद मंजिल को होगा
तेरा इंतज़ार बहुत.
दिल तो बस एक आईना
है,
हमारी कारगुज़ारियों
का.
लेकिन ये भी करता तो
है,
हमसे सवाल ज़वाब बहुत.
मन तेरा अब पूछता है,
तुझसे बार बार यही.
दुर्गम डगर के
राहगीर,
क्यों मंजिल पे
पहुंचे हैं बहुत.
© सुशील मिश्र.
20/03/2013
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