Thursday, April 4, 2013

राह तकने में


राह तकने में

ज़माना कहता है.
की तूने ज़िंदगी बरबाद कर ली अपनी,
उसकी राह तकने में.
फ़साना भी यही कहता है,
कि तूने हालत खराब कर ली अपनी,
उसकी राह तकने में.
वो करें या ना करें,
हम तो उन्हें याद करेंगे नींदों में भी ख़्वाबों में भी,
ये जिद है हमारी.
उन्हें ऐतबार हो या ना हो,
ये तो दौर  ही बताएगा, कि कैसे वक्त को भी थाम लिया था हमने,
उनकी राह तकने में.

यूँ ही हम ज़माने के, सर आँखों पे नहीं बैठे थे,
आँधियों और तूफानों से लड़ा करते थे जब तक थी लहू में रवानी,
ये तो आज वो भी मानते हैं.
एक माहौल वो भी था,
जब ख़्वाबों में ही सही लेकिन मुलाक़ात उनसे रोज़ होती थी,
ये तो आज वो भी मानते हैं.
वो दौर और वो माहौल,
याद हमें आज भी है एक मुकम्मल इबारत की तरह,
खुदा की कसम.
एक दौर वो भी था,
जब सारी बातें जोश में होती थीं, लेकिन ज़मीन ताउम्र बंजर ही रही,
ये तो आज हम भी मानते हैं.

ज़बान दी थी उसने,
कि बिना हिले वो उम्रें गुज़ार देगा दरख्तों की तरह,
हमारी राह तकने में.
ज़माना तो कुछ भी कहेगा,
पर हम कैसे मुकर जायें जबकी वो अब भी खड़ा है वहीं पर,
हमारी राह तकने में.
इल्म है मुझे,
की बहुत बंदिशें हैं वफ़ा की राह में पर कदम तो बढ़ाना ही पड़ेगा,
हौसले से उसकी ज़ानिब.
सदियाँ गुजर गईं तबसे,
फिर भी उसके हौसले का कायल हूँ, कि उसने पलकें तक नहीं झुकाईं,
हमारी राह तकने में.

और ,
ज़माना है कि, अब भी कहता है.
की तूने ज़िंदगी बरबाद कर ली अपनी,
उसकी राह तकने में.

लेकिन हमारा ज़वाब अब भी वही है कि,
उन्हें ऐतबार हो या ना हो,
ये तो दौर  ही बताएगा, कि कैसे वक्त को भी थाम लिया था हमने,
उसकी राह तकने में.

© सुशील मिश्र.
04/04/2013

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