Thursday, April 18, 2013

ज़माना और हम


ज़माना और हम

ये ज़माना बहुत ज़ालिम है, ज़रा संभल के रहना,
जुमला-ए-खास तो अमूमन सबने सुना ही होगा.
घिसते रहे ताउम्र इस जुमले को हम सभी बराबर,
मगर ज़ालिम क्यों है ज़माना, किसी ने पूछा ना होगा.

असलियत से बेखबर हैं हम लोग, इसीलिए,
ज़माने ने जो कहा वही हम भी कहे जाते हैं,
सच्चाई का इल्म नहीं है हमें,
इसीलिए सबकी बात बस यूँ ही सहे जाते हैं.
पता नहीं क्यों हम आदत से मज़बूर,
हमेशा लकीर के फ़कीर ही बने जाते हैं.

दिल को मज़बूत करो, हौसले में उम्र भरो,
और फिर ज़माने कि आँख में आँख मिलाकर पूछो.
कि भाई तू इतना ज़ालिम क्यों है,
जिसे देखो वही तुझपे तोहमतें लगाता है,
और एक तू है कि फिर भी बाज़ नहीं आता है.

हमारा इतना पूछना ही था कि बस,
ज़माना हो गया लाल,
और हमें दिखने लगा अपना काल.
एकबारगी हमें लगा कि यार गलती कर दी,
इसे तो गाली सुनने की आदत थी,
लगता है हमने इसके ज़मीर पे चोट कर दी.
और हाँ सोचना हमारा सही निकला,
चोट तो ज़माने के ज़मीर पर ही थी,
और उसको लगी भी एकदम निशाने पर थी.

लेकिन ये क्या, वो तो शांतिवार्ता के माहौल में,
चिंतनपरक बातचीत पर उतर आया.
तब जाकर हमें समझ में आया,
कि लगता है आजतक किसी ने भी,
ज़माने की कोई फिक्र नहीं की.
बस उसे केवल और केवल तोहमतें,
इल्ज़ाम, गालियां और ज़लालत ही दी.

अब सोचो हमारे इस व्यवहार का,
वो क्या सिला दे.
हम उसके साथ बदसलूकी करते रहें,
तो वो कैसे हमें अपने गले से लगा ले.
हम लगातार गलतियां करते रहे,
और इल्ज़ाम उसके माथे धरते रहे.
कुछ दिनों तक तो फ़र्ज़ के नाते,
उसनें वो गलतियाँ छुपाई.

लेकिन जब ज़माने को इस बात का हुआ एहसास,
कि गलतियाँ करना और उसे ज़माने के माथे धरना,
ये हमारी आदत हो गई है.
तो उसने हमें कई बार समझाया,
लेकिन हमें नहीं समझ में आया.
इस बात से ज़माना हो गया उदास,
हम सुधरेंगे इसकी अब,
उसको बिल्कुल ना रही आस.

क्योंकी ये बात वो अच्छी तरह जान चुका था,
कि अनजानी गलतियाँ तो सुधारी जा सकती हैं.
लेकिन खुद की जिम्मेदारियों से,
लगातार और बार बार पीछे हटना,
और दोष हमेशा दूसरों पर पटकना.
अपनी गलतियों को हमेशा दूसरों पर थोपना,
और गलती करने से खुद को ना रोकना,
ऐसी बातें स्वयं को अंदर से,
पूरी तरह खोखला बना देती हैं.  
और हम उसके शिकार हैं,
हमारी आदतें खुद ही बता देती हैं.

अतः ज़माने को दोष देना,
ये स्वयं कमजोरी की निशानी है.
जिस दिन हम आगे बढ़कर,
अपनी गलतियों को स्वीकारेंगे,
और फिर उन्हें सुधारेंगे.
उस दिन यही ज़माना हमें सलाम करेगा,
और हम भी इसमें कोई दोष नहीं निकालेंगे.
क्योंकी जब हम अर्थात ज़माने वाले,
अच्छे होंगे तभी ज़माना भी अच्छा होगा.
तो आज ही कसम खाएं,
कि हम खुद को बदलें,
तो ज़माना खुद-ब-खुद बदलेगा.
ज़माने को ज़ालिम नहीं जिंदादिल कहें,
तो वो भी फूलों की तरह महकेगा.

© सुशील मिश्र.
   17/04/2013
  

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