वास्तविकता
तुम मे है यदि आग
तुम्हारी लपटें बतला देंगी,
तुम मे है क्या ज्ञान
तुम्हारी वाणी बतला देगी.
सच्चा वीर नहीं चाहता
अपने पौरुष का गुणगान,
इतिहासों को पढ़ो
तुम्हें वे खुद ही बतला देंगीं.
इसमें उसमें मुझमें
तुझमें करता है जो भेद,
उनसे पूछो कितने रंग
के होते हैं ये स्वेद (पसीना).
ज्ञानी हैं जो उनसे
पूछो लहू के कितने रंग,
हाँथ खड़े कर देंगे
अपने जतला देंगे खेद.
ज्ञानी कहते किसको
जिसको ज्ञान नहीं है इतना,
पढ़ लें वे लाखों ही पुस्तक
पढ़ना चाहें जितना.
ज्ञान मनन चिन्तन से
मिलता कौन बताए इनको,
पुस्तक तो केवल साधन
है रट लो चाहे जितना.
दया धर्म से जो जीता
है जीवन अपना सारा,
प्राणिमात्र के
हितचिन्तन में जिसने जीवन वारा.
काल स्वयं उसके
सम्मुख आने से सकुचाए,
जिस मानव ने सकल
पदारथ के हित मार्ग सुझाए.
वीर किसे कहते हैं
तुमको ये भी अब बतला दूं,
सच्चाई के लिए लड़े जो
वैसा शौर्य दिखा दूं.
कठिन समय हो फिर भी
जो निर्भय होकर चलता है,
मातृभूमि के लिए लड़े
जो वो ही वीर निकलता है.
निंदा करके दूजे की
क्या कोई ज्ञान जुटा पाया,
नक़ल किया हो जिसने
जीवन भर, वो किसको क्या सिखला पाया.
स्वयं भ्रमित हैं
जीवन में जो खुद को पण्डित कहते हैं,
सच में जो पण्डित है वह
खुद को, केवल ज्ञान पिपासु कहला पाया.
शांति शौर्य साहस और
संबल कौन सिखाता जग में,
चिन्तन और चातुर्य का
नियमन कौन बताता जग में.
ये ऐसी विद्याएँ
जिनको गुरुकुल नहीं सिखाता,
स्वयं परिश्रम से ही
उपजें ये सब अपने मग में.
वो देखो जो ऊपर बैठा
बहुत बड़ा ज्ञाता है,
उसकी किताब में देखो
भाई सबका ही खाता है.
वैसे तो ये नकली ज्ञानी सबकुछ सिखला देंगे,
वो जो सम्मुख आ जाये
कुछ सूझ नहीं पाता है.
तुम मे है यदि आग
तुम्हारी लपटें बतला देंगी,
तुम मे है क्या ज्ञान
तुम्हारी वाणी बतला देगी.
सच्चा वीर नहीं चाहता
अपने पौरुष का गुणगान,
इतिहासों को पढ़ो
तुम्हें वे खुद ही बतला देंगीं.
© सुशील मिश्र.
29/04/13
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