बीत गया
यारों का याराना बीत
गया, वो हंसना गाना बीत गया.
इस रोजी रोटी के
चक्कर में, वो दौर सुहाना बीत गया.
एक एक सिक्के की कीमत
थी, पर इतनी नहीं मुसीबत थी.
दुःख दर्द सभी साझा
करते. इतनी हर समय गनीमत थी.
अब हैं नोटों से जेब
भरे, और सामानों से बाज़ार भरे.
पर नोटों से खुशी
नहीं मिलती, बाज़ारों में ये कौन सुने.
नये ज़माने के व्यंजन
से, लोगों को है प्यार हुआ.
पिज्जा बर्गर कोका के
युग में, पूड़ी हलुए की कौन सुने.
प्यार मोहब्बत बदल
गया, अब वेलेंटाइन स्टाइल में,
फगुआ सावन मान मनौवल,
झामताम अब कौन सुने.
जब ए बी सी डी का नशा
चढ़ा, शिक्षा के पैरोकारों कों,
तब अ आ इ ई क ख ग घ,
वालों की फिर कौन सुने.
जिम एरोबिक्स जागिंग
से ही, जब बॉडी शेप में आती है,
तब योग ध्यान आसन की फिर
से दकियानूसी कौन सुने.
अब हाथ मिलाने का युग
है, दिल की कोई परवाह नहीं.
ऊपर से नकली
मुस्कानें, भीतर से कोई चाह नहीं.
पहले मन से मन की गति
को, सब अनायास पढ़ लेते थे.
अब घंटों समझाने पर
भी, कोई समुचित व्यवहार नहीं.
मातु पिता से भी ऊपर,
जब गुरु को जाना जाता था,
वो नीति ज्ञान और
परिपाटी, का जुग ज़माना बीत गया.
घर को छोड़ा जबसे
हमने, नये फ़्लैट के चक्कर में,
तब से पता नहीं
क्यों, चिड़ियों का भी आना जाना छूट गया.
संघी साथी छूट गये,
वो हा हा ही ही छूट गया,
खुद से खुद को मिले
हुए, एक अरसा भी तो बीत गया.
यारों का याराना बीत
गया, वो हंसना गाना बीत गया.
इस रोजी रोटी के
चक्कर में, वो दौर सुहाना बीत गया.
© सुशील
मिश्र.
06/04/2013
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