दादियाँ और
नानियां
ये झुकी हुई काया,
ये आँखों पे चश्मा,
ये चहरे की
झुर्रियाँ,
खुली नज़रों से
देखेंगे तो पायेंगे की,
सामान्यतः ये हैं
बुढापे की निशानियां.
लेकिन,
उसी खुली नज़र को थोड़ा
दिल के करीब लाएं,
हल्के से रूह के
नज़दीक भी जाएँ.
तब उसी,
झुकी काया, आँख के
चश्में और चहरे की झुर्रियों,
में, हमें अपना बचपन
और उसी मे उनकी खुशियाँ,
हमारी शरारतें और उसी
मे उनकी झिड़कियाँ,
उनके दुलार की ओट में
हमारी गुस्ताखियाँ,
पूरे जहां से जो छुपा
ले जातीं हैं हमारी बुराइयाँ,
असल में वे ही होती
हैं दादियाँ और नानियां......
असल में वे ही होती
हैं दादियाँ और नानियां......
© सुशील मिश्र.
30/04/2013
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