Sunday, April 28, 2013

ये क्या होता है.


ये क्या होता है.

लहूलुहान धरती के बेटों देखो ये क्या होता है,
आँखों में यदी शर्म बची तो सोचो ये क्या होता है.
माँ बहना बिटिया बीवी से फुलवारी तो महक गयी,
जिसने हमको जन्म दिया उसके संग ये क्या होता है.

छोटी सी यदि बच्ची भी अब नहीं सुरक्षित गलियों में,
उसका बचपन भी छीना कुछ आदमखोर दरिंदों ने.
दिनकर ही जब काँप रहा है खुदकी भरी दुपहरी में,
फूल नहीं बनना है हमको मिलकर कहा है कलियों ने.

तरह तरह के फूल महकते हैं जिसकी फुलवारी में,
वातावरण सुगन्धित होता है जिसकी रखवाली में.
बहुत बड़ा यह प्रश्नचिन्ह है उस माली के वर्तन पर,
विष की कोई पौध मिले यदि उसकी ही फुलवारी में.

माना साशन कायर है पर तुमने भी कुछ ना बोला,
राजनीति की गद्दारी पर अपना मुहँ क्यूँ ना खोला.
सरेआम बाज़ारों में जब अस्मत लूटी जाती है,
गलियों से चौराहों तक में केवल सन्नाटा बोला.

सन्नाटों में कब तक दबकर रहेंगीं दुखदाई चीखें,
सन्नाटे तो ऊपर हैं विद्रोह की अंगड़ाई नीचे.
डरा डरा और सहमा सहमा जब तक यह कुनबा होगा,
समझो दुष्टों का ये बल है इस आडम्बर के पीछे.

अब तो तुम प्रतिकार करो वर्ना सोचो कल क्या होगा,
आज दिवस यदि ऐसा है कल अँधियारे में क्या होगा.
पाप कर्म करने वाले बैरी को अब पहचानों तुम,
हुँकार करो रणचण्डी सा बोलो रिपुमर्दन अब होगा.

वर्ना बस हम हाँथ मलेंगे और पछताएंगे कल को,
जो भी हमसे बिछड़ गये कैसे बिसराएँ अब उनको.
अपनों की यादें आँखों से जब आंसू बनकर रिसते हैं,
सचमुच सम्मुख आ जाते हैं खोया है हमने जिनको.

तुम तो अब संग्राम करो, वो (दुर्जन) चाहे कितना ओछा है,
सदा सुपथ के अनुयाई का भाग्य न सबदिन सोता है.
अपने कर्मठ संकल्पों से माहौल बदल कर रख दोगे,
याद रहे कि संघर्षों में वजन बहुत ही होता है.

लहूलुहान धरती के बेटों देखो ये क्या होता है,
आँखों में यदी शर्म बची तो सोचो ये क्या होता है.
माँ बहना बिटिया बीवी से फुलवारी तो महक गयी,
जिसने हमको जन्म दिया उसके संग ये क्या होता है.


© सुशील मिश्र.
28/04/2013

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