Wednesday, April 10, 2013

नव वर्ष


नव वर्ष

नवमन्वंतर के शिल्पी हम, जोत जगाने आये हैं,
अपने सत्कर्मों से जग को राह दिखाने आये हैं.
वैभव में दिनरात पड़े जो देशकाल की सोचें ना,
नवसंवत्सर की बेला में उन्हें जगाने आये हैं.

नया सवेरा हुआ है अब तो आँख खोल कर देखें हम,
अपने भीतर जो अंधियारा उसको भी तो देखें हम.
रात घनेरी या दुपहर हो निर्धन तो दिन रात खटे,
नये वर्ष की इस बेला में इसपर भी कुछ सोचें हम

नई सोच हो नई प्रेरणा जिसमें मानव का हित हो,
ऐसे शुभकर्मों में अपना जीवन अपना मन व्रत हो.
पश्चिम से जो हवा चली है भोगों में रत रहने की,
नये वर्ष के नये सवेरे में इस चिन्तन का हत हो.

योगिराज केशव की शिक्षा हमको अब अपनाना है,
राघव के जीवन आदर्शो को भी हमको पाना है.
भारत के जीवन दर्शन को जग ने भी स्वीकार लिया,
नूतन वर्ष में वेद ऋचाएँ घर घर में पहुचाना है.

कठिन परिश्रम में लग जाएँ तो ही समुचित मान मिले,
नर ही नारायण है ऐसा चिन्तन ऐसा ज्ञान मिले.
हे देवी माँ हे जगजननी इतना दे वरदान हमें,
नये वर्ष में जन जन के ही अधरों पर मुस्कान खिले.

© सुशील मिश्र.
                                                                         10/04/2013

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